सोमवार, 20 नवंबर 2017

आज़ादी की लड़ाई में राजपूत राजाओ का सहयोग (भाग 2)

शशि थरूर जी आपके लिए जबाब ।  अंग्रेजो के बिरुद्ध राजपूत राजाओ का महा सहयोग ........
1857 के वीर आदिवासी क्रांतिकारी देशभक्तों में मध्यप्रदेश के गौंड़, राजवंश के राजा शंकर शाह और उनके पुत्र रघुनाथ शाह का नाम देशवासी सदा कृतज्ञता से आदर पूर्वक स्मरण करते हैैं। शंकर शाह गढ़ामंडला के प्राचीन गौंड राजघराने के वंशज थे। उनके पूर्वजों ने 1500 तक गौड़वाना में राज्य किया था और स्वतंत्रता प्रेमी गौंड शासकों ने हमेशा अपने राज्य को स्वायत्त और स्वतंत्र बनाने के लिए आक्र मणकारियों से संघर्ष किया। इसी राजवंश में प्रतापी वीर महारानी दुर्गावती थी, जिन्होंने मुगल बादशाह अकबर की फौज से संघर्ष करते हुए अपने प्राणों की आहूति देकर अपनी और अपने राज्य की स्वतंत्रता को अक्षुण्ण रखा था।

शंकर शाह अपने यशस्वी स्वतंत्रता प्रेमी पूर्वजों के इतिहास पर गर्व करते थे इसीलिए जब 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ देशी रियासतों और सैनिकों ने सशस्त्र क्रांति की, तब उन्होंने इसमें सहयोग दिया। वीर शंकर शाह ने एक छंदमय कविता की रचना की और गांव-गांव में और दूरदराज के वनों में रहने वाले आदिवासी गर्व और जोश से इस कविता को गाते हुए अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह करने लगे। जबलपुर के डिप्टी कमिश्नर को जब इसकी सूचना मिली तो उन्होंने इस कविता के रचनाकार को तलाशना शुरू कर दिया। जांच के दौरान जब पुलिस को पता चला कि राजा शंकर शाह कविताएं लिखते हैं, तो डिप्टी कमिश्नर ने गढ़ामंडला में उनके निवास की तलाशी ली और वहां एक कागज पर लिखी यह कविता जब उन्हें मिली तो उन्होंने राजा शंकर शाह को कैद कर लिया।

शंकर शाह अपने पूर्वजों के समझौते के कारण ईस्ट इंडिया कंपनी की सरकार के पेंशनर थे और पुरवा में अपने पुत्र रघुनाथ शाह के साथ रहते थे, लेकिन गढ़ामंडला में उनका परम्परागत निवास भी था, जहां वे अक्सर आया-जाया करते थे और अपनी रियासत के सरदारों, जागीरदारों के वंशजों से समय-समय पर भेंट मुलाकात भी करते थे। यद्यपि शंकर शाह का राज्य अंग्रेजों ने हड़प लिया था और उनके पास कोई शासन अधिकार भी नहीं थे, लेकिन जनता में वे लोकप्रिय और आदरणीय बने हुए थे। इसी कारण जनता ने 1857 में उनके आवाहन पर कंपनी सरकार के खिलाफ संघर्ष किया।

अंग्रेज डिप्टी कमिश्नर ने शंकर शाह को कंपनी की ओर से पेंशन के अलावा तीन गांव की जागीर भी दी थी। इस कारण कंपनी ने उन्हें अपना जागीरदार और पेंशनर बना रखा था और जब उन्होंने विद्रोह किया तो कंपनी सरकार के डिप्टी कमिश्नर ने राजा शंकर शाह को राजद्रोही घोषित कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया। बताया जाता है कि आदिवासी विद्रोहियों ने 1857 के सितम्बर माह में किसी दिन संगठित रूप से जबलपुर में अंग्रेजों की छावनी पर आक्रमण करने की योजना बनाई थी, लेकिन डिप्टी कमिश्नर ने फकीर के वेश में एक चपरासी को शंकर शाह के इर्द गिर्द तैनात कर रखा था और उसी की सूचना पर डिप्टी कमिश्नर को आदिवासी विद्रोह की खबर मिली। इस पर लेफ्टिनेंट क्लार्क के साथ 20 सैनिक जवानों और बड़ी संख्या में पुलिसकर्मियों को पुरवा में शंकर शाह को घेरने के लिए भेजा गया।

डिप्टी कमिश्नर भी इस सैनिक दल के साथ शामिल हुआ। 14 सितम्बर 1857 को शंकर शाह का निवास घेर लिया गया और पूरे गांव को भी घेर लिया गया। इसके बाद राजा के निवास में घुसकर डिप्टी कमिश्नर ने राजा शंकर शाह, उनके पुत्र रघुनाथ शाह और 13 अन्य व्यक्तियों को गिरफ्तार कर जबलपुर छावनी भेज दिया। बाद में निवास स्थान की गहन तलाशी ली गई तो आपत्ति जनक वस्तु के नाम पर केवल कागज का एक टुकड़ा मिला, जिसमें की दुर्गादेवी की स्तुति की कविता छन्द रूप में लिखी गई थी। चूंकि यह कविता जनता में लोकप्रिय हो चुकी थी अत: डिप्टी कमिश्नर ने इसे विद्रोह की कविता मानकर राजा और उनके पुत्र को राजद्रोही घोषित कर दिया। एक अन्य कागज पर रघुनाथ शाह द्वारा देशभक्ति से प्रेरित कविता भी डिप्टी कमिश्नर को मिली। बाद में उसने रघुनाथ शाह और शंकर शाह की कविताओं का अस्काइन नामक एक विद्ववान से अनुवाद कराया।

अपने प्रिय नेता और राजा तथा उसके परिवारजनों की अंग्रेज सरकार द्वारा गिरफ्तारी की खबर मिलने पर आदिवासी उग्र हो गए और उन्होंने इनकी रिहाई के लिए जबलपुर पर सशस्त्र हमला कर दिया, लेकिन इस बारे में तत्कालीन अंग्रेज सरकार के सैनिक दस्तावेजों में कोई विवरण नहीं मिलता है। इतना जरूर लिखा गया है कि रात्रि में छावनी के पास गोली चालन की आवाजें सुनी गई और छावनी के पास एक मकान में आग लगा दी गई। कुछ कैदियों को छुड़ाने के भी प्रयास किये गये, लेकिन इन प्रयासों में तीन आदिवासियों की मौत हो गई। आदिवासी विद्रोहियों ने जेल से कई कैदियों को रिहा कराने में सफलता पाई थी, इसका पता इसी से चलता है कि घटना की जांच के लिए एक जांच कमेटी बनाई गई जिसमें डिप्टी कमिश्नर और दो अंग्रेज अधिकारी शामिल किए गए। कुछ दिनों बाद जेल से भागे कई कैदियों को पकडऩे मे अंग्रेज पुलिस को सफलता भी मिल गई और उनमें से कई कैदियों को चुपचाप राजद्रोह का अपराधी घोषित कर उन्हें कठोर दण्ड दिया गया।

राजा शंकर शाह और उनके पुत्र रघुनाथ शाह को 18 सितम्बर 1857 को एक तोप के मूह से बांधकर मौत की नींद सुला दिया गया। वृद्ध शंकर शाह और उनके पुत्र ने सीना तानकर अपनी मातृभूमि की आजादी के लिए जयघोष किया और खुशी-खुशी मौत को गले लगा लिया।

शशि थरूर जैसे सुतियों के कारण हमे अपने गौरवशाली इतिहास को पुनः स्मरण करने का मौका मिलता है , इनके लिए जूतांजलि तो बनती है । 

आज़ादी की लड़ाई में राजपूत राजाओ का सहयोग (भाग 1).

दो दिन पहले कांग्रेस नेता शशी थरूर राजपूतों पर तंज कसते हुए कह रहे थें कि अंग्रेजों के समय में राजपूत कहां थे ?....तो थरूर साहब राजपूत 1000 वर्षो तक जिस तरह मुसलमानों से लड़ते रहें,उसी तरह वें अंग्रेजो से भी पुरे देश में लड़ते रहें।बेहतर होगा कि आप इतिहास को अच्छी तरह से अध्ययन करें।आज मैं 1857 की क्रांति में बिहार के राजपूतों के योगदान पर चर्चा करूंगा।
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...बिहार में क्रांति का नेतृत्व का जगदीशपुर रियासत के राजा वीर कुंवर सिंह ने नेतृत्व किया।वह भी उस 80 वर्ष के बुढापे के उम्र में जिस उम्र में लोग लाठी का सहारा ले लेते हैं लेकिन उन्होनें तलवार का सहारा लिया था।25 जुलाई 1875 को बिहार के दानापुर के भारतीय सैनिकों ने विद्रोह कर दिया और वें सभी जगदीशपुर जाकर वीर कुंवर सिंह के सेना में शामिल हो गये।कुंवर सिंह ने सेना को संगठित कर अंग्रेजो से युद्ध किया।
.....कुंवर सिंह को साथ देने के लिए बिहार के विभिन्न क्षेत्रों से अनेक राजपूत जागीरदार और जमींदार भी आएं जिनका नाम है---पीरो परगना का तहसीलदार हरिकिशन सिंह अपने चारों भाई लक्ष्मी सिंह,अजीत सिंह, आनन्द सिंह और राधसिंह ने इस क्रांति में भाग लिया इन चारों को अंग्रेजो ने काले पानी की सजा दी थी।
.........विर कुंवर सिंह के साथ अंग्रेजों के विरूद्ध जिन राजपूतों की महत्वपुर्ण भूमिका रही उनका नाम है सासाराम के निशान सिंह चौहान ,गाजीपुर के सिधा सिंह और जोधा सिंह,रामेशर सिंह ( अंग्रेजी सेना का बागी सुबेदार ), सुन्दर सिंह (जनरल पद पर ), भजन सिंह ( चावर,भोजपुर अंग्रेजी सेना के बागी सुबेदार ) , राणा दालान सिंह (क्रांति परामर्श दाता ), जीवधन सिंह (खुमदनी ,गया का जमींदार), बिहियां कुमान का कमाण्डर लक्ष्मी सिंह (भदवर ,भोजपुर ), कान सिंह ,काशी सिंह (प्रधान सेनापति ), रणबहादुर सिंह (गाजीपुर का जमींदार ), शिवबालक सिंह (क्रांति के जनरल ),हरि सिंह हेमतपुर (भोजपुर का जमींदार )।
.......हजारा सिंह (भोजपुर-बलिया का जमींदार ),मनकुब सिंह (अंग्रेजी सेना के बागी सिपाही) ,जगमाल सिंह (बागी सिपाही ), उदति सिंह ,द्वारका सिंह , शिवधर शरण सिंह,आनन्द सिंह (घुड़सवार सेना के जनरल ), रामनारायण सिंह (बागी सिपाही ), राधे सिंह,भोला सिंह (गोला-बारूद प्रभारी ),देव सिंह ,साहिबजादा सिंह ,राम सिंह (बागी सुबेदार ),तिलक सिंह और भारू सिंह(बागी सुबेदार ), तिलक सिंह (बागी सुबेदार )।
......18मार्च 1858 को आजमगढ के पास अतरौलिया में कुंवर सिंह के नेतृत्व में राजपूतों ने अंग्रेजो के विरूद्ध घोर युद्ध किया यह यूद्ध चार दिन तक चला 22 मार्च को अंग्रेजी सेना हार गई।उसके बाद कर्नल डेम्स के नेतृत्व में अंग्रेजी कमांडर मिलमैन की सहायता के लिए आई किंतु राजपूतों ने उसे भी पराजित कर दिया।डेम्स भागकर आजमगढ किले में छिप गया।उसके बाद बनारस पर चढाई किया गया तो इससे घबड़ाकर लार्ड कैनिंग घबड़ाकर बड़ी सेना भेज दी।6 अप्रैल को युद्ध हुआ लार्डमार्क हार कर भाग गया किंतु कुंवर सिंह ने पिछि कर उसे आजमगढ के किले में कैद कर लिया।उसे साथ देने लगर्ड आया वह भी हार गया।जब वें गंगा पार कर जगदीशपुर आ रहे थे तो डगलस के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना पिछा करती आ गई और गोली चलाने लगा एक गोली उनके दांये हाथ में लगी विष फैलने के डर से उन्होने तलवार से अपना हाथ काट दिया।
.......उनके जगदीशपुर पहुंचने के 24 घंटे बाद ही लिग्रैण्ड के नेतृत्व में फिर अंग्रेजी सेना ने आक्रमण कर दिया।यहां पर भी 23 अप्रैल 1858 को बुरी अंग्रेजों की हार हुई।उसके बाद जगदीशपुर शासन करने लगे वे पुरी तरह अजेय रहें किंतु युद्ध में इतने बुरी तरह से घायल हो गये थे कि तीन दिन बाद 26 अप्रैल 1858 को स्वर्ग सिधार गयें।अंग्रेज इतिहासकार होम्स इनकी वीरता पर मुग्धर होकर अपनी पुस्तक में लिखता है----The Old Rajput who has fought so honourabluy and so bravely against the british power died on 26 april 1858
..........वीर कुंवर सिंह के स्वर्गावास के बाद अमर सिंह गद्दी पर बैठें उन्होने भी डगलस और लगर्ड की सेना से युद्ध लड़ा।बिहिया,हातम
पुर ,दलीलपुर आदी तीनों जगह अंग्रेजो की इस तरह हराया की 15 जुन 1858 को जनरल लगर्ड को त्यागपत्र देना पड़ा।उसके बाद उसने कसम खायी की मै अमर सिंह को हराकर ही नौकरी में लौटुंगा 19 अक्टुबर को नोनुदी गांव मे फिर घोर युद्ध हुआ।अंग्रेज अमर सिंह के हाथी तक पहुंचे लेकिन वे हाथी से कुदकर निकल पड़े इसके बाद अमर सिंह का कहीं पता न चला।
.......अंग्रेजी काल में बिहार के कुछ और राजपूत वीरों ने अंग्रेजो से लोहा लिया जिनमें मुंगेर जिले गिद्धोर रियासत के राजकुमार कालिका सिंह, ठाकुर बनारसी प्रसाद सिंह इन इलाको से नन्दकुमार सिंह,श्याम सिंह ,नेमधारी सिंह तो शाहाबाद के हरिहर सिंह,सारण के प्रभुनाथ सिंह ,सारंगधर सिंह आदी हजारीबाग से रामनारायण सिंह समस्तीपुर से सत्यनारायण सिंह ,शिवपुर से नवाब सिंह आदी बहुत से बिहार के राजपूतों ने राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लिया।
उत्तरप्रदेश : 
रायबरेली के राजा --: राणा बेनी माधव सिंह ने 1857 की लड़ाई में बहुत ही महत्वपुर्ण भूमिका निभाया था।इन्होनें हीरा पट्टी के ठाकुर परगट सिंह, परदहां के ठाकुर जालिम सिंह, अजमतगढ़ के गोगा व भीखा साव तथा दुबारी, भगतपुर, नैनीजोर, रुदरी, बम्हौर, मोहब्बतपुर, बगहीडाड़ के क्रान्तिकारियों को संगठन में शामिल कर सेना बनाकर अंग्रेजों से पहले-पहल गुरील्ला युद्ध कर बहुत नुकसान पहुंचाया। 3 जून 1857 को विद्रोह हुआ तो इनके नेतृत्व में अंग्रेजों का खजाना लूटा गया। जेल से कैदी आजाद किये गये। सरकारी कार्यालयों पर कब्जा कर स्वतंत्रता का झण्डा फहरा दिया गया।इस संघर्ष में लेफ्टिनेंट हचिंसन व कर्नल डेविस मारे गये। गये।

.....इसके बाद 4 जून को विपल्वी सैनिक और बेनी माधव सिंह सरदार बन्धु सिंह के नेतृत्व में फैजाबाद रवाना हो गये। वहां पर भाग रहे अंग्रेजों को घाघरा नदी में बेगमगंज के निकट मौत के घाट उतार दिया और कानपुर के विद्रोहियों की मदद के लिए चल दिये।
......26 जून 1857 को अंग्रेजी अफसर बेनी बुल्स ने बवण्डरा किले की घेराबंदी की। बेनी माधव सिंह की विपल्वी सेना से अंग्रेज परास्त होकर भाग खड़े हुए। राजा की सेना ने अंग्रेजों का पीछा किया। बेनी बुल्स की हार की जानकारी बनारस और इलाहाबाद पहुंची तो भारी संख्या में ब्रिटिश फौज आजमगढ़ भेजी गयी।
अंग्रेजी सेना अतरौलिया पहुंचती कि इससे पहले ही कोयलसा में फिर मुठभेड़ हुई और अंग्रेज पुन: परास्त हुए।मैदान छोड़कर भाग रहे अंग्रेजी सेना पर विपल्वी सेना ने कप्तानगंज और सेहदां में पुन: आक्रमण कर गोला-बारूद व रसद छीन लिया तथा स्वतंत्रता का ध्वज लहरा दिया।इसके बाद बेनी माधव सिंह और कुंवर सिंह की अतरौलिया के लिए रवाना हुई।बिहार भोजपुर में अंग्रेजी सेना से घमासान युद्ध हुआ। अंग्रेज परास्त होकर भाग खड़े हुए। बेनी माधव सिंह ने भारी मात्रा में गोला-बारूद हथियार अंग्रेजो से छिन लिये।(स्रोत-भारत में अंग्रेजी काल ,भाग-3 )
राजा हनुमन्त सिंह ---:सन 1857 में कालांकार (प्रतापगढ ) के राजा हनवंतसिंह ने देश की आजादी के लिए अंग्रेजों से सशस्त्र संघर्ष करने के लिए अपने बड़े पुत्र राजकुमार लाल साहब प्रताप सिंह के नेतृत्व में 1000 सैनिकों की एक बटालियन बनाई और इसी बटालियन का नेतृत्व करते 19 फरवरी 1858 को इतिहास प्रसिद्ध चांदा के युद्ध में कॉलिन कैम्पबेल के नेतृत्व वाली अंग्रेजी फौजों से लोहा लेते हुए राजकुमार प्रताप सिंह विरगति हो गयें।.......
राजा पृथ्वीपाल सिंह--: ने 3 जुन 1857 की लड़ाई में अंग्रेजो से लड़कर अपना तिघरा राज्य वापस ले लिया था।
राजा फतेहबहादुर सिंह--: इन्होनें भी 3 जुन 1857 को अंग्रेजों से अपना अतरौलिया राज्य छिन लिया था।किंतु बाद में 23 जून 1858 को राजा फतेह बहादुर सिंह फैजाबाद में महीरपुर कोट के निकट अंग्रेजों से युद्ध करते हुए विरगति को प्राप्त हो गये।
राजा देवीबक्श सिंह विशेन --: यह गोंडा के राजा थें।सबसे पहले इन्होनें अंग्रेजों से खुद लड़ाई लड़ी उसके बाद यह बेगम हजरत महल के साथ जा मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाईयां लड़ी।अंग्रेजों ने इनके विरता को देखकर प्रलोभन भी दिया कि आप लड़ना छोड़ दिजीए हम आपके राज्य लौटा देगें लेकिन वें मानें नही लड़ते रहें।अंत में यह नेपाल चले गयें।
लाल माधव सिंह --: यह अमेठी के राजा थें पहली लड़ाई में हार गयें और इन्होनें अमेठी खो दिया था 13 नवम्बर 1858 को इन्होनें अंग्रेजों से रामसाकिया का किला छिन लिया।उसके बाद इन्होनें अमेठी किला जीतने की योजना बनाई।अंग्रेजों से बार-बार संघर्ष किया अनेक में जीते भी तो हारे भी।इनके विरता को विस्तृत रूप से जानने के लिए आपको अंग्रेजी की बुक- सिवील रिविलियन इन इंडियन म्यूटिनीज- को पढना पड़ेगा।
राजा जसपाल सिंह --: इन्होनें अंग्रेजों को इतना परेशान किया था और छति पहुंचायी थी कि अंग्रेजो ने लखनऊ में इनकों फांसी दे दिया था।
अन्य राजा --- नरहरपुर के राजा हरि नारायण सिंह, सतासी के राजा उदित नारायण सिंह, हरिकृष्ण सिंह के साथ अंग्रेजों से लोहा लिये थे। इन राजाओं और जमींदारों को संगठित कर पैना के अयोध्या सिंह, ठाकुर सिंह, माधों सिंह, पल्टन सिंह, गुरूदयाल सिंह आदि ने 600 से अधिक हथियार बन्द सैनिको को लेकर अंग्रेजों से आजादी की जंग शुरू कर दी थी। 31 मई 1857 को फिरंगियों के साथ जंगे एलान कर गोरखपुर-पटना और गोरखपुर-आजमगढ़ का नदी मार्ग यातायात रोककर घाटों पर रसद और खजाने से लदी नावों को रोककर लूट लिया था।
सैनिक राजपूत ---:जब 1857 की लड़ाई शुरू हुई तो कई राजपूत सैनिक ने विद्रोह कर अंग्रेजों के खिलाफ बगावत कर लड़ाईया लड़ी जिनका नाम है--द्वारका सिंह, कालका सिंह, रघुबीर सिंह,बलदेव सिंह, दर्शन सिंह,मोती सिंह हीरा सिंह,सेवा सिंह, काशी सिंह, भगवान् सिंह, शिवबक्स सिंह ,लक्ष्मण सिंह, रामसहाय सिंह, रामसवरण सिंह, शिव सिंह, शीतल सिंह, मोहन सिंह, इन्दर सिंह ,मैकू सिंह, रामचरण सिंह, शीतल सिंह ,मथुरा सिंह, नारायण सिंह, लाल सिंह,शिवदीन सिंह, बिशनसिंह, बलदेव सिंह, माखन सिंह, दुर्गा सिंह,जुराखन सिंह प्रथम और बरजौर सिंह।--स्रोत (भारत में अंग्रेजीकाल ,भाग -2 )
ग्रामीण राजपूत ---: हापुड़ जिलें में धौलाना एक गांव हैं यहां और इसके आस-पास के सैंकड़ों ग्रामीण राजपूतों ने अंग्रेजों के विरूद्ध सशस्त्र लड़ाई लड़ी।यहां के राजपूतों ने मेरठ जाकर पुरे शहर पर ही अपना अधिकार जमा लिया और ग्यारह पलटनों के अंग्रेज कर्नल लेफ्टिनेंट हंडरसन, ले.पेंट आदि को मार डाला फिर वहां से यह लोग दिल्ली कुच गयें।दिल्ली पहुंचकर भी इनलोगों ने कई सरकारी भवनों से अंग्रेजों के झंडा को उतार फेंका और चार अंग्रेजों को मार डाला।
जिसपर अंग्रेजों ने इनके गांव से पकड़कर धौलाना गांव में ही 29 नवम्बर 1857 को पिपल के पेंड़ पर 13 राजपूतों और 1 वैश्य को फांसी पर लटका दिया था जिनका नाम है --लाला झनकूमल 2. वजीर सिंह चौहान 3. साहब सिंह गहलौत 4. सुमेर सिंह गहलौत 5. किड्ढा गहलौत, 6. चन्दन सिंह गहलौत 7. मक्खन सिंह गहलौत 8. जिया सिंह गहलौत 9. दौलत सिंह गहलौत 10. जीराज सिंह गहलौत 11. दुर्गा सिंह गहलौत 12. मुसाहब सिंह गहलौत 13. दलेल सिंह गहलौत 14. महाराज सिंह गहलौत।--(स्रोत--दैनिक जागरण तथा शिवकुमार गोयल की पुस्तक क्रांतिकारी आंदोलन )।
राजा उदित नारायण---: सतासी नरेश राजा उदित नारायण सिंह ने भी अंग्रेजों को खुब पानी पिलाया।इन्होनें कुछ क्रांतिकारीयों की मदद से गोरखपुर शहर को ही कब्जा कर लिया था।लगभग तीन महीनें तक गोरखपुर इनके कब्जे में रहा उसके बाद अंग्रेजों ने जाल बिछाकर पकड़ लिया और काला पानी की सजा दी जहां इनका स्वर्गवास हो गया (स्रोत --श्री नेत राजपूत के भेजे गये संदेश )
FB से  Sanjeet Singh का  लेख.......