गुरुवार, 25 सितंबर 2014

मुस्लिम महिलाओ को कॉमन सिविल कोड के लाभ


1. मुस्लिम महिलाओ का  पति घर बैठे तीन बार ''तलाक ! तलाक !! तलाक''  कहकर पत्नी को घर से नही निकल सकेगा ।
2. यदि निकाला तो हिन्दू तलाकशुदा महिलाओ कि भांति उसे एक निश्चित राशि पत्नी कि देना होगी, जो तलाकशुदा मुश्लिम महिलाओ को नही मिलती । 
3. तलाकशुदा मुस्लिम महिला  को मात्र मेहर मिलता है जो जीवन यापन के लिए एक दो वर्ष भी नही चलता
4. कॉमन-सिविल कोड लागू हो गया तो पत्नी कि तलाक देने के लिए कोर्ट के चक्कर लगाते मुसलमानो के जूते घिस जायेंगे ।
5. मुस्लिम महिला को आज तलाक देने का अधिकार नही है ।  वह उसे मिल जाएगा । घुट- घुट कर मरना नही पड़ेगा ।
6. मुसलमान लड़की को आज पिता कि संपत्ति में मात्र एक तिहाई का   अधिकार है वह बराबरी का हो जायेगा ।
7.मुस्लिम महिला के पति द्वारा तलाक दिए जाने पर तीन माह तक इद्दत कि मुद्दत पूरी होने के बाद ही दूसरी शादी कर सकती है ।  कॉमन सिविल कोड लागू होते ही पति द्वारा तलाक दिए जाने पर तुरंत विवाह कर सकेगी ।
8. भूल-चुक हो जाने पर या गलती से क्रोध में पति के मुंह से तीन बार तलाक निकल जाने पर निरपराध मुस्लिम महिला पुनः अपने पति के साथ नही रह सकती ।  उसे तीन माह बाद किसी दूसरे से निकाह करना पड़ता है, उससे तलाक दिए जाने पर फिर तीन माह बाद अपने पूर्व पति से विवाह कर सकती है ।  इस झंझट से मुक्ति मिलेगी  बिना कोर्ट में गये तलाक मान्य नही होगा और बीच में किसी दूसरे कि पत्नी बननें और शरीर अपवित्र करने कि बाध्यता भी नही होगी और नए पति ने यदि तलाक नही दिया तो आजीवन न चाहते हुए भी उसकी पत्नी बन रहना होगा। 
9. निकाह हराम हो जाने कि स्थित  में स्त्री अपने विवाहित पति के पास नही रह सकती उसे किसी दूसरे से निकाह कि रश्म अदायगी नही करनी पड़ती है। 

10. बैंगलोर में ७००० और मुम्बई ५००० मुस्लिम लड़किओं ने अपने क्लब बना आजीवन विवाह न करने का निश्चय कर लिया है  सारे संसार कि पड़ी लिखी मुस्लिम महिलाये कुंवारी रहना पसंद कर रही है  उन्हें सरियत से निकाह कर जीवनभर पति कि गुलामी पसंद नही   कॉमन सिविल कोड से उन्हें पुरुष कि गुलामी से मुक्ति मिल जायेगी । 

11. ससुर द्वारा बलात्कार किये जाने पर पति के लिए अपनी पत्नी हराम हो जाती है, वह माँ मान ली जाती है । ससुर को कोई दंड नही मिलता ।  कॉमन सिविल कोड से इस मानवताहीन प्रथा से मु.महिला मुक्त हो जायेगी । 

12. पति के कहीं खो जाने पर भी मुस्लिम महिला कहीं दूसरा विवाह नही कर सकती  उसे अपने पति कि ६३ वर्ष कि आयु हो जाने पर ही दूसरे निकाह कि अनुमति मिलती है  तब तक बेचारी स्वयं बूढी हो जाती है, विवाह व्यर्थ सा हो जाता है । 

13. आज मुसलमान अपनी अच्छी भली, सुंदर, पढ़ी-लिखी, कामकाज में चतुर, आज्ञाकारी, इनकी पीढ़ी चलाने वाली पत्नी होते हुए  भी, दूसरी, तीसरी, चौथी पत्नी ले आते  है ।  न पत्नी उसे रोक सकती है न न्याय व्यवस्था यह सरियत कि मुसलमान पुरुषो को दी गयी सहूलियत है  जब कॉमन-सिविल कोड बन जाएगा तो मु. महिला सोतन कि कुंठा से मुक्त होंगी उसका पति दूसरी पत्नी ला नही सकेगा । 

जरा कॉमन सिविल कोड के लाभ मुस्लिम महिलाओ तक पहुंचा कर तो देखिये| 

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